भुनसारे चिरैया...

Sunday, July 14, 20133comments

लोक गीत लिखित नहीं हैं, इन्हें लोगों ने अपने अनुभव से रचा है।

दिल से निकले इनके शब्द दिलों में बस जाते हैं और इनको गाते-गुनगुनाते पीढि़यों निकल जाने के बावजूद पुराने नहीं लगते।

जब सुनो तब मन झूम उठता है। इनमें पेड़, पौधे, पक्षी सब उसी सहज भाव से आते हैं जैसे वे हमारे अपने परिवार के सदस्य हैं। यह लोकगीत भी इसकी बानगी है।

गीत सुन्ने के लिए प्लेयर चलायें.

Share this article :

+ comments + 3 comments

भुनसारे चिरैया काहे बोली... अच्छा लग रहा है सुनकर एकदम देसी आनंद .. पहले कभी गाँव में सुने लोकगीत याद आ गए. माँ का प्यार ऐसे ही बना रहे.

July 22, 2013 at 11:33 AM

Sunkar bahut achchha laga ! aabhaar ! ajay.

Anonymous
January 23, 2023 at 10:43 AM

अद्भुत अनुभव।
बाबा भाई यह है माटी का जुड़ाव।
प्रणाम मां जी को

Post a Comment