
दिल से निकले इनके शब्द दिलों में बस जाते हैं और इनको गाते-गुनगुनाते पीढि़यों निकल जाने के बावजूद पुराने नहीं लगते।
जब सुनो तब मन झूम उठता है। इनमें पेड़, पौधे, पक्षी सब उसी सहज भाव से आते हैं जैसे वे हमारे अपने परिवार के सदस्य हैं। यह लोकगीत भी इसकी बानगी है।
गीत सुन्ने के लिए प्लेयर चलायें.
+ comments + 3 comments
भुनसारे चिरैया काहे बोली... अच्छा लग रहा है सुनकर एकदम देसी आनंद .. पहले कभी गाँव में सुने लोकगीत याद आ गए. माँ का प्यार ऐसे ही बना रहे.
Sunkar bahut achchha laga ! aabhaar ! ajay.
अद्भुत अनुभव।
बाबा भाई यह है माटी का जुड़ाव।
प्रणाम मां जी को
Post a Comment