सेवक की प्रार्थना

Saturday, October 5, 20130 comments

हे नम्रता के सागर!
दीन दुखी की हीन कुटिया के निवासी,
गंगा, यमुना और ब्रह्मपुत्र के जलों से सिंचित
इस सुंदर देश में
तुझे सब जगह खोजने में हमें मदद दे।

हमें ग्रहणशीलता और खुला दिल दे;
अपनी नम्रता दे;
हिन्दुस्तान की जनता से एकरूप होने की
शक्ति और उत्कण्ठा दे।

हे भगवान! तू तभी मदद के लिए आता है,
जब मनुष्य शून्य बनकर, तेरी शरण लेता है।
हमें वरदान दे कि
सेवक और मित्र के नाते
जिस जनता की हम सेवा करना चाहते हैं,
उससे कभी अलग न पड़ जायें।

हमें त्याग, शक्ति और नम्रता की मूर्ति बना,
ताकि
इस देश को हम
ज्यादा समझें और ज्यादा चाहें!

-मोहनदास करमचंद गांधी
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