देनवा का अनुपम सौंदर्य

Saturday, July 13, 20131comments

सतपुड़ा पर्वत श्रृंखला की प्रसिद्ध महादेव की पहाडि़यों से उदगमित देनवा से मेरा कर्इ बार साक्षात्कार हो चुका है। कभी मटकुली के पुल पर, देनवा दर्शऩ और थोड़ा नीचे जंगल रास्तों पर। लेकिन सतधारा में देनवा का सौंदर्य देखते ही बनता है। हल्के काले रंग की एक छोर से दूसरे छोर तक चटटानों  पर अलग-अलग सात धाराओं में उछलती-कूदती और नाचती-गाती देनवा को घंटों निहारते रहो, तब भी मन नहीं भरता।

यहां देनवा के किनारे दोंनों ओर हरा-भरा जंगल है। बीच में देनवा। सरसराती हवा और चिडियों के सुंदर गान से माहौल मजेदार बन जाता है। हमें ज्यादा अंदाजा नहीं था कि यहां देनवा दर्शन और प्राकृतिक सानिध्य पाने के लिए इतने लोग आते है। कुछ ही घंटों में दर्जन भर गाडियां आ गई और ऊंचार्इ से उतर कर नदी में स्नान करने चले गए। कुछ लोग अपने साथ भोजन वगैरह लाए थे, वे भोजन करने लगे। बच्चे नदी की रेत  में खेलने-कूदने लगे।

भौगोलिक रूप से होशंगाबाद जिला दो भागों में बंटा है। एक मैदानी क्षेत्र और जंगल पटटी। मैदानी भाग में नर्मदा कछार है और यहां मिश्रित आबादी है। यहां तवा की नहर से सिंचित खेती भी है। जबकि जंगल पटटी में गोंड-कोरकू आदिवासी ही निवास करते हैं। और अधिकांश खेती-बाड़ी बारिश पर निर्भर है।

सतपुडा की सबसे ऊंची चोटी धूपगढ़ पचमढी में ही है और उसके नजदीक से ही देनवा उदगमित हुर्इ है। और वहीं से एक बडी नदी सोनभद्रा का उदगम स्थल है। लेकिन देनवा दक्षिण से देनवा कुंड से निकलती है। फिर बांद्राभान में तवा में मिलती है, जो नर्मदा की सहायक नदी है। इटारसी से जबलपुर रेल लाइन पर तवा पर पुल है, जिसमें बारिश में बहुत पानी रहता है।

देनवा के किनारे दोनों ओर हरा-भरा जंगल है। बीच में देनवा। सरसराती हवा और चिडियों के सुंदर गान से माहौल मजेदार बन जाता है। हमें ज्यादा अंदाजा नहीं था कि यहां देनवा दर्शन और प्राकृतिक सानिध्य पाने के लिए इतने लोग आते है। कुछ ही घंटों में दर्जन भर गाडियां आ गई और ऊंचार्इ से उतर कर नदी में स्नान करने चले गए। नर्मदा की तरह देनवा का भी धार्मिक महत्व है जो हमें भी देखने को मिला। जून माह के तीसरे इतवार को जिस दिन हम वहां पर गए थे, कुछ ग्रामीण स्त्री पुरुष देनवा की पूजा करने आए थे। भूराभगत पर तो मेला भी लगता है। पचमढी आते-जाते समय मटकुली पुल पर रूककर लोग इसकी पूजा करते हैं।

नदियों से जीवन है यह किताबी परिभाषा नहीं, हकीकत है। देनवा के किनारे फैली रैत में बरौआ समुदाय के लोग तरबूज खरबूज की खेती करते है। गर्मियों में यहां की ककडी और खरबूजों की मांग बढ जाती है। और स्थानीय लोगों को भी रोजगार मिलता है।

गर्मियों के मौसम में मटकुली में यहां की ककड़ी बिकती हैं। महिलाओं छोटी टोकनियों में लेकर ककडि़यां बेचती हैं। बारिश में मछुआरे जाल लेकर देनवा में डेरा डाले रहते हैं  क्योंकि जैसे ही देनवा में थोड़ा ज्यादा पानी हुआ, तवा बांध की मछलियां ऊपर चढ़ आती हैं और मछुआरों को मछली मिलती हैं।

बारिश में मटकुली के पुल पर बाढ़ आ जाती है और अक्सर पिपरिया-पचमढ़ी का रास्ता बंद हो जाता है जब तक बाढ़ नहीं उतर जाती है। मटकुली में ही भभूतसिंह कुंड है, जो आदिवासियों की अंग्रेजों से लड़ार्इ की याद दिलाता है, जो हर्राकोट के कोरकू राजा भभूतसिंह ने अपने अधिकार व इज्जत के लिए अंग्रेजों से लड़ी थी। इसी देनवा के किनारे जबर्दस्त लड़ार्इ हुर्इ थी।

कुल मिलाकर, देनवा जैसी छोटी नदियों का बहुत महत्व है। सतपुड़ा से निकलने वाली ज्यादातर नदियां धीरे-धीरे दम तोड़ रही हैं। दुधी, पलकमती, मछवासा, शक्कर आदि कर्इ नदियां अब बरसाती नाला बन कर रह गर्इ हैं, जो पहले सदानीरा थी।

देनवा में अभी पानी है, सौंदर्य भी है, जंगल भी है। लेकिन यह कब तक बचा रहेगा, यह कहा नहीं जा सकता। इसका पानी भी धीरे-धीरे कम होने लगा है। ऐसी छोटी नदियों को बचाने की जरूरत है। इसकी चिंता करने की जरूरत है। शायद हम कुछ कर पाएं। फिलहाल, सतधारा का अनुपम सौंदर्य देखकर हम अभिभूत हैं।

बाबा मायाराम
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July 13, 2013 at 10:34 PM

सतधारा का सौंदर्य और उसकी अनुपम व्‍याख्‍या....दोनों खूब है...

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