
गौरतलब है कि दो महीने पहले भी 24 मई को जन सुनवाई आयोजित की गई थी जिसे भी जन विरोध की आशंका के चलते प्रशासन ने स्थगित कर दिया था। तब भी 16 लाख का टेंट लगाया जा चुका था। इस बार प्रशासन ने ज्यादा तैयारी की थी। जन सुनवाई का स्थान चुटका से बदलकर 15 किमी दूर मानेगांव में रखा गया था जहाँ पर कर्मचारियों के लिए कोलोनी बननी है और जहाँ विरोध इतना संगठित नहीं है। प्रचार- प्रलोभन आदि का भी खूब प्रयोग किया गया। कारखाने के विरोध में प्रचार कर रहे कार्यकर्ताओं को पुलिस ने धमकाने.डराने की भी कोशिश की।
मंडला जिले के पुलिस अधीक्षक ने भी इन गांवों का दौरा किया और ग्रामीणों से चर्चा की। पिछली बार विरोध सभा में बरगी जलाशय ;जिसके किनारे यह कारखाना लगेगा। इसके उस पार सिवनी जिले के गांवों से भी लोग बड़ी संख्या में नाव से आये थे। ये गांव भी चुटका की तरह बरगी बांध से विस्थापित हैं, आदिवासी हैं और इस आन्दोलन को समर्थन दे रहे हैं। इस बार जलाशय में चलने वाली नावों को रोकने की भी असफल कोशिश की गई। इसके बावजूद जन विरोध दबता हुआ नहीं दिखा।
यह भी उल्लेखनीय है कि इस परियोजना से सीधे प्रभावित होने वाले ;जिनकी जमीन जायेगी, तीनों गांव..चुटका, टाटीघाट और कुंडा..की ग्रामसभाएं सर्वसम्मति से काफी पहले इस परियोजना के विरोध में प्रस्ताव पास कर चुकी हैं। यह पांचवी अनुसूची के तहत अधिसूचित आदिवासी इलाका है और पेसा कानून के तहत किसी भी परियोजना के लिए ग्राम सभा की सहमति अनिवार्य है।
हाल ही में ओड़िशा के नियमगिरि इलाके में वेदांत कंपनी की एलुमिनियम. बाक्साईट परियोजना के विषय में सर्वोच्च न्यायालय ने भी ग्राम सभा के ही फैसले को अंतिम बताया। वहां ग्राम सभाएं चल रही हैं। अभी तक हुई वहां की सातों ग्राम सभाएं परियोजना के विरोध में अपना मत जाहिर कर चुकी हैं।
चुटका परमाणु संघर्ष समिति के प्रतिनिधियों ने 25 जुलाई को जबलपुर में एक पत्रकार वार्ता करके चेतावनी दी थी कि जान देंगे पर जन सुनवाई नहीं होने देंगे। 25 जुलाई से मानेगांव में जन सुनवाई के विरोध में धरना भी शुरू कर दिया गया था। गांव.गांव में विरोध में पोस्टर लगा दिए गए थे और दीवाल लेखन हो गया था। नतीजतन दूसरी बार प्रशासन को इसे स्थगित करने का फैसला करना पड़ा।
चुटका परमाणु संघर्ष समिति के प्रतिनिधियों ने 25 जुलाई को जबलपुर में एक पत्रकार वार्ता करके चेतावनी दी थी कि जान देंगे पर जन सुनवाई नहीं होने देंगे। 25 जुलाई से मानेगांव में जन सुनवाई के विरोध में धरना भी शुरू कर दिया गया था। गांव.गांव में विरोध में पोस्टर लगा दिए गए थे और दीवाल लेखन हो गया था। नतीजतन दूसरी बार प्रशासन को इसे स्थगित करने का फैसला करना पड़ा।शायद प्रदेश सरकार आगामी नवंबर में होने वाले विधानसभा चुनावों को देखते हुए आदिवासियों से ज्यादा टकराव का जोखिम नहीं लेना चाहती है। जो भी हो, यह शायद पहली बार हुआ है कि किसी परियोजना की जन सुनवाई को प्रबल जन विरोध के कारण दो बार स्थगित करना पड़ा हो।
३० जुलाई को परमाणु बिजलीघर के विरोध में मानेगांव में एक सभा रखी गई थी जो विजय सभा और जुलुस में बदल गई। इसे समाजकर्मी संदीप पांडे, गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष गुलज़ार सिंह मरकाम, समाजवादी जन परिषद के राष्ट्रीय महामंत्री सुनील, भाकपा और भाकपा;माले के पदाधिकारियों, जयंत वर्मा, परमाणु संघर्ष समिति के पदाधिकारियों आदि ने संबोधित किया।
इस मौके पर सजप के अनुराग मोदी, परमाणु निरस्त्रीकरण और शांति समिति ;सी एन डी पी के पी के सुन्दरम, महान कोलफील्ड संघर्ष समिति सिंगरोली की प्रिया पिल्लई आदि भी शामिल हुए। बरगी बांध विस्थापित संघ और जबलपुर के कई नागरिक संगठन इसमें पूरी मुस्तेदी से लगे हुए हैं। एक प्रमुख भूमिका गोंडवाना गणतंत्र पार्टी की है जिसका इस इलाके में अच्छा जनाधार है। प्रदेश के जन संगठनों के जन संघर्ष मोर्चा ने भी इस आन्दोलन को सक्रीय समर्थन दिया है।
भोपाल में भी इस आन्दोलन का एक अच्छा समर्थक समूह बन गया है और वहां से युवाओं की टीम ने दोनों बार एक हफ्ते पहले आकर परमाणु बिजली के विरोध में खूब प्रचार किया। उनके द्वारा एक नुक्कड़ नाटक भी खेला गया। चित्रों और कार्टूनों के साथ परमाणु बिजली के खतरों को समझाती एक छोटी पुस्तिका और जन गण मन नामक पत्र का चुटका संघर्ष पर केंद्रित पहला अंक भी इस मौके पर जारी किया गया।
इस घटना के चार दिन पहले 25.26 जुलाई को अहमदाबाद में परमाणु उर्जा पर एक सम्मेलन में देश भर के वैज्ञानिक, परमाणु उर्जा विरोधी कार्यकर्ता और आंदोलनों के प्रतिनिधि इकट्ठे हुए थेण् वहां एक परमाणु उर्जा पर जन घोषणापत्र जारी किया गया था.
इसमें देश के परमाणु बिजली परियोजनाओं पर तत्काल रोक लगाने की मांग की गई थी और इसके बारे में कई सवाल खड़े किये गए थेण् 29 जुलाई को जबलपुर में एक पत्रकार वार्ता में सजप के सुनील तथा पी के सुन्दरम ने इस घोषणापत्र को जारी किया।
समाजवादी जन परिषद ने चुटका जन सुनवाई को रद्द किये जाने को जनता की जीत बताया है और कहा है कि इससे उन सारे जन संघर्षों को ताकत मिलेगी जो विनाशकारी परियोजनाओं के खिलाफ संघर्ष कर रहे हैं। सजप ने मांग की है कि परमाणु बिजली कार्यक्रम आत्मघातीए पागलपन भरा और मूर्खतापूर्ण है, इसे पूरी तरह बंद किया जाना चाहिये। पूरी दुनिया में दो.तीन देशों के अलावा बाकी देश इसे छोड़ रहे हैं।
सुनील
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