गांवों की धीमी गति से चलने वाली जिंदगी में गीत-गाने, तीज-त्यौहार और मेलों से उत्साह आता है। लोक गीत गांवों की जिंदगी में रचे-बसे होते हैं। इन अनुभव से रचे गए गीतों में पशु-पक्षी उसी तरह आते हैं जैसे कोई मनुष्य।
भगवान कृष्ण से संबंधित गीतों में खेल, गीत व हंसी ठिठोली और नटखटपन सहज ही आता है। प्रस्तुत दोनों गीत उन पर ही हैं। इन गीतों को होशंगाबाद जिले के गांव के आदिवासी युवा बाबूलाल ने गाया है।
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