
हम नियमगिरी को नहीं छोड़ेंगे.
हम झरनों को नहीं छोड़ेंगे
नियमगिरी हमारी मां हैं
नियमगिरी हमारे पिता हैं.
हम नियमगिरी जंगल के पनछीओं के समान हैं
हम नियमगिरी में अपना बसेरा बांधकर हैं.
हम सब नियमगिरी के बच्चे हैं
हम नियामगिरी को छोड़ कर नहीं रह सकते.
हम कभी भी नियमगिरी को नहीं छोड़ेंगे.
अगर हमें मरना भी पड़े तो हम मरेंगे
लेकिन मां मिट्टी को नहीं छोड़ेंगे.
हम चाहे मर जायेंगे
पर नियमगिरी नहीं छोड़ेंगे.
यह डोंगर छोड़ने से
हम कहाँ पर लकड़ी और पत्ता पायेंगे ?
हम यह यह झरने का पानी कहाँ से पायेंगे ?
यह एक गांव के लोगों की नहीं हैं
यह पूरे नियमगिरी क्षेत्र की बात है
हम नियमगिरी नहीं छोड़ेंगे.
हम इतने सारे लोग कहां जायेंगे
हमारे मिट्टी मां को छोड़कर.
हम सब एक होंगे और
नियमगिरी को नहीं छोडेंगे.
अगर हम सब एक होंगे तो
कंपनी, पुलिस और गुण्डों से भी डरने की जरूरत नहीं.
हम अब मूंछ मोड़कर
नियंमगिरि की सुरक्षा करने के लिये तैयार हैं।
सभी मां बहनें अब उठो चले
नियंमगिरि के सुरक्षा के लिये, लड़ने के लिये.
हम घर छोड कर, चिडियों की तरह उड़ कर कहां जायेंगें
घर द्वार छोड़ कर दूसरे गांव जाने से
इस गांव इस जगह की तरह् सुविधा पा सकेंगे क्या ?
इस तरह् के झरने का पानी, पहाड़ और जंगल वहां होगा क्या ?
इस नियमगिरि से जाते हैं तो
हमारा नियमगिरि हम और कहाँ पायेंगे ?
यहाँ हम जो कंदमूल, केला खाकर जी रहे हैं,
वह हमें और कहां मिलेगा.
हम अगर यह आज छोड़ देते हैं तो
हमारे बच्चों की (आनेवाले पीढ़ी की) हालत बहुत ख़राब होगी.
हम अगर छोड़ देते हैं तो बच्चे सब परेशान हो जाएंगे.
यहां एक विधवा भी लकड़ी-पत्ता बेचकर गुजारा कर पा रही है
जितना भी भूख प्यास हो हम यहां सुविधा- असुविधा के बीच भी
अच्छे से हैं.
हम हमारी धरनी देवता को कैसे छोड़ कर जायेंगे ?
हे नियमगिरि हम तेरे लिए संघर्ष कर रहे हैं,
और जान भी देंगे
हमारा दुःख, हमारी पुकार थोड़ा सुन नियम राजा !
हम अगर हट जाते हैं तो इस तरह का झरना,
पानी, जंगल और डोंगर कहां पायेंगे ?
हमने इस गाँव के धरनी माता के लिए भी लड़ाई की है
हम उसे नहीं छोड़ सकते
हम यहां 12 महीने में 13 पूजा दे रहे हैं, हम उस मां को
कैसे भूल सकते हैं ? हम छोड़ नहीं सकते.
मां अगर हम यहां से हट जाते हैं तो मां
तू कैसे पूजा पाएगी ? मां तू हमें आशा, भरोसा दे.
हम यहां घर द्वार करके, खेती किसानी करके
रह रहे हैं, हे धरनी मां ! तू अगर हमें सहारा भरोसा नहीं देगी तो
हम कैसे करेंगे ?
हे मां कोटिआसिल ( और एक धरनी देवता ) !
जब कंपनी हमें हटा देगी या खदेड़ देगी
तब तू अगर सहारा भरोसा नहीं देगी
तब हम कहां जायेंगे.
धरनी मां , हम जो तुझे पूजा पाठ दे रहे हैं,
अगर हम यहां से चले जाते हैं तो
तू और क्या पूजा पाएगी ?
( नियमगिरि से सट कर है अन्हार पहाड़़ )
हे अनहरु ! तुम अगर हमे सहारा भरोसा नाहिन दोगे तो
हम यह डंगर जंगल कहां से पायेंगे?
हे टाफ़्रा पहाड़ !
तेरे उम्मीद से हम यहां पर हैं,
तेरे पहाड़ खोद कर हम मडीआ, कोसला उगाकर
हम जी खा रहे हैं.
हम नियमगिरि क्षेत्र के लोग
तेरे लिये रैली, मीटिंग करके
तेरे सुरक्षा के लिये लडाई कर रहे हैं.
हम तकलीफ सह कर
भूख उपास में भी तेरे लिये लडाई कर रहे हैं.
केला, कन्द मूल , अदरक
कि खेती कर के हम कमा खा रहे हैं.
हम साल साल नियमराजा को पूजा दे रहे हैं
तेरे लिये, तेरे नाम से हम पूजा दे रहे हैं
हम सब् " नेबाराजा " ( और एक पहाड का नाम है ) के बच्चे हैं,
हम सब् नियमराजा के बच्चे हैं,
हम तुम्हे नहीं छोड़ सकते।
बूढा राजा तुम्हें भी हम पूजा कर रहे हैं,
हम सब् तुम्हारे बच्चे हैं.
हम सब नियमगिरी के बच्चे हैं.
हम नियमगिरी को नहीं छोड़ेंगे.
हम झरनों को नहीं छोड़ेंगे
नियमगिरी हमारी मां हैं
नियमगिरी हमारे पिता हैं.
(यह नियमगिरि में वेदान्त कंपनी और विस्थापन के खिलाफ हो रहे डोंगरिया आदिवासिओं के संघर्ष की गीत हैं. यह गीत नियमगिरि यात्रा के दौरान इन्द्र सिकोका और करगे कृष सिकोका से लिए हैं जो उनकी भाषा में गा रहे थे जिसका ओडिया से हिंदी में पुरुषोत्तम सिंह ठाकुर ने अनुवाद किया है.)
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