नर्मदा में फिर जल सत्याग्रह

Friday, August 30, 20130 comments

आगामी 1 सितम्बर से इंदिरा सागर बांध क्षेत्र के हजारों विस्थापित खंडवा, हरदा और देवास के तीन प्रभावित जिलो में जल सत्याग्रह शुरू करेंगे. यह जल सत्याग्रह खंडवा जिले के ग्राम बड्खालिया, हरदा जिले के ग्राम उंवा और देवास जिले का ग्राम मेल पिपलिया में किया जायेगा.

इन प्रभावितों की मांग है कि इंदिरा सागर बाँध का जल स्तर 260 मीटर के ऊपर न ले जाया जाए और डूब से प्रभावित खेत और मकान का भूअर्जन किया जाए, प्रभावित परिवारों का संपूर्ण पुनर्वास किया जाए, किसानों को ज़मीन के बदले ज़मीन और न्यूनतम 5 एकड़ ज़मीन दी जाए और मजदूरों को 2.5 लाख रुपये का अनुदान दिया जाए ताकि किसान और मजदूर विस्थापन के बाद अपना जीवन और जीविका बेहतर ढंग से चला सके.

उल्लेखनीय है कि देश के सबसे बड़े बांध इंदिरा सागर से 254 गांव प्रभावित हुए हैं. जमीन के बदले जमीन की नीति होने के बावजूद एक भी प्रभावित को जमीन दिए बिना बहुत थोड़ा मुआवजा देकर उजाड़ दिया गया. सरकारी आंकड़ों के अनुसार 85% से अधिक किसान कोई जमीन नहीं खरीद पाए और भूमिहीन बन गए हैं.

सर्वोच्च न्यायलय व् उच्च न्यायालय की रोक के बावजूद गत वर्ष बांध का जल स्तर 262 मीटर तक भर दिया गया था. इसके खिलाफ नर्मदा बचाओ आंदोलन ने सर्वोच्च न्यायालय का दरवाज़ा खटखटाया जिसमें सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार को 18 जनवरी 2013 तक जवाब देने को कहा था. लेकिन 8 माह बाद भी सरकार ने कोई जवाब नहीं दिया है. परियोजनाकर्ता और सरकार की योजना है कि 1 सितम्बर से इंदिरा सागर परियोजना का जल स्तर 260 मीटर से बढ़ाकर 262 मीटर तक भरना चालू किया जाएगा. अगर ऐसा होगा, तो बगैर भू-अर्जन और पुनर्वास के ही हजारों घर और खेत डूब जाएंगे, और संबंधित परिवार उजड़ जाएंगे.

मध्य प्रदेश सरकार द्वारा स्वयं उनके सर्वेक्षण में पाया गया है कि इंदिरा सागर बांध में 262 मीटर पानी भरने पर इस डूब व् इसके बैक वाटर प्रभाव से लगभग 2500 घर प्रभावित होंगे. इन मकानों का सर्वेक्षण एवं मूल्यांकन करने के बावजूद ना इनका  अधिग्रहण किया गया है और ना इनमें रहने वाले परिवारों का पुनर्वास किया गया है.

 डूब के कारण से हजारों एकड़ ज़मीन और मकान टापू बन गए हैं, जिसमें बांध के पानी के कारण जाना-आना संभव नहीं है और किसान को खेती करना संभव नहीं है. सरकार द्वारा स्वयं ऐसे लगभग 70 जगह पर पुल आदि बनाने का निर्णय लिया गया परन्तु पिछले एक वर्ष में ये कार्य पूरे नहीं किए गए और अनेक स्थानों पर यह प्रारंभ भी नहीं हो पाए हैं. कई जगह टापू बन चुकी हैं और पानी बढ़ने पर शेष जमीनें भी टापू बन जाएंगी.

 इसके अलावा, ऐसे 3500 घर हैं जिनमें रहने वाले किसानों की ज़मीन अधिग्रहीत की गयी हैं, लेकिन जिनका घर डूब में ना होने के कारण अधिग्रहीत नहीं किया है. सम्पूर्ण जमीनें डूबने के कारण ये परिवार जीविका से वंचित हो गए हैं पर घर अधिग्रहण न होने से अन्यत्र पुनर्वासित न हो पाने के कारण ये परिवार अत्यंत दुर्दशा में हैं. इनका सर्वेक्षण होने के बावजूद सरकार इन परिवारों के विषय में कोई निर्णय नहीं ले रही है.

इंदिरा सागर परियोजना से प्रभावित 255 गांव में से आखिरी 41 गांव के सर्वेक्षण को नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण ने रोक कर रखा है, जिसके कारण इन गांव में कितने खेत और मकान डूब में हैं, इसका आंकलन नहीं हो पा रहा है. लेकिन बाँध में 262 मीटर तक पानी भरने से पिछले 2 साल से इन गांवों में बड़ी डूब आई है. इस साल इन गांवों में लगभग 1500 घर डूब गए, और इन 41 गांव में से 2 कस्बानुमा बड़े गाँव – हंडिया और नेमावर को खाली करवाना पड़ा. केंद्र जल आयोग ने पिछले साल यह स्पष्ट किया था कि बेक-वाटर सर्वेक्षण इस लिए प्रमाणिक नहीं हो पा रहा है, क्योंकि सहायक नदियों की बाढ़ उसमें शामिल नहीं की जा रहा है, और सहायक नदी (जो काफी बड़ी-बड़ी है) की बाढ़ का कोई आंकलन ही नहीं है.

फाइल फोटो: पल्लव                                                                                                        
 -आलोक अग्रवाल
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