विस्थापितों का सविनय अवज्ञा आन्दोलन

Tuesday, September 10, 20130 comments

नर्मदा नदी पर बन रहे देश के सबसे बड़े इंदिरा सागर बांध प्रभावित 3 जिलों खंडवा, हरदा और देवास में हजारों प्रभावितों द्वारा गत 10 दिनों से एक ऐतिहासिक सविनय अवज्ञा आन्दोलन चलाया जा रहा है. 1 सितम्बर से प्रारम्भ हुए जल सत्याग्रह को सरकार द्वारा धारा 144 लगाकर कुचलने का प्रयास किया गया, परन्तु तीनों जिलों में हजारों प्रभावितों ने इस धारा 144 को तोड़कर गिरफ्तारियां दी और जल सत्याग्रह को फैलाते गए हैं. आज यह जल सत्याग्रह 6 जगह जोर शोर से चल रहा है.

 उल्लेखनीय है कि देश के सबसे बड़े बांध इंदिरा सागर से 254 गांव प्रभावित हुए हैं. जमीन के बदले जमीन की नीति होने के बावजूद एक भी प्रभावित को जमीन दिए बिना बहुत थोडा मुआवजा देकर उजाड़ दिया गया है. सरकारी आंकड़ों के अनुसार 85% से अधिक किसान कोई जमीन नहीं खरीद पाए और भूमिहीन बन गए हैं. भूमिहीन तो दर-दर की ठोकरे खाने पर मजबूर हुए हैं. इसके अतिरिक्त हजारों परिवारों का भू-अर्जन एवं पुनर्वास बाकी है. सर्वोच्च न्यायलय व् उच्च न्यायालय की 260 मीटर के ऊपर जलाशय भरने रोक के बावजूद बांध में पानी 262.13 मीटर तक भर दिया गया है, जिस कारण आज लछोरा, कालिसराय, पिपलानी आदि अनेक गावों में घरों में पानी भर गया है और लगभग 2000 एकड़ जमीन टापू बन गयी है.

 लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष सुषमा स्वराज के साथ आज आन्दोलन की वरिष्ठ कार्यकर्ता चित्तरूपा पालित के नेतृत्व में तीनों जिले के प्रतिनिधिमंडल ने राजधानी भोपाल में मुलाकात कर इंदिरा सागर प्रभावितों की गंभीर हालत एवं जल सत्याग्रह के बारे में अवगत कराया. सुषमा स्वराज ने गंभीरता से पूरी बात सुनने के बाद कहा वो इस विषय पर मुख्यमंत्रीजी से बात कर शीघ्र निर्णय लेगीं.

इस बीच जल सत्याग्रहियों के शरीर धीरे-धीरे कमजोर होते जा रहे हैं. कई को बुखार, खुजली की शिकायत हो रही है. कई सत्याग्रहियों की चमड़ी गलने लगी है और खून भी रिसने लगा है. उनके शरीरों को पानी के जीव खाने लगे हैं. पानी गन्दा होने से गंभीर बीमारी का खतरा है. पर  उनका हौसला बुलंद है. आज मालूद सत्याग्रह से 14 महिला सत्याग्रहियों को अस्पताल में भर्ती कराया गया.

इंदिरा सागर परियोजना से देश का सबसे बड़ा विस्थापन हुआ है. इस परियोजना से 50,000 से अधिक परिवार अर्थात लगभग 3 लाख लोग प्रभावित हुए हैं. इन सभी विस्थापितों के लिए बनी पुनर्वास नीति का पूरी तरह से उल्लंघन हुआ और एक भी विस्थापित को जमीन न देकर, थोडा सा मुआवजा देकर उजाड़ दिया गया. आज यह विस्थापित अपने अधिकार के लिए संघर्ष कर रहा है. विस्थापितों की मांग है कि सर्वोच्च न्यायालय व् उच्च न्यायालय के आदेशों के अनुसार इंदिरा सागर बाँध का जल स्तर 260 मीटर तक लाया जाये. किसानो को ज़मीन के बदले ज़मीन और न्यूनतम 5 एकड़ ज़मीन दी जाये या यह जमीन उन्हें खरीदने में मदद की जाये. मजदूरों को 2.5 लाख रुपये का अनुदान दिया जाये ताकि वो अपना जीवन और जीविका बेहतर ढंग से चला सके. डूब से प्रभावित हजारों खेतों और मकानों का भू अर्जन किया जाये, सम्बंधित हज़ारो परिवारों का संपूर्ण पुनर्वास किया जाये, टापू बनी ज़मीनों और मकानों तक पहुँचने के लिए पुलिया और सड़कों का निर्माण तत्काल किया जाए.

लाखों लोगों की बर्बादी कर कोई विकास वास्तविक विकास नहीं हो सकता. जरुरी है कि ऐसी सभी परियोजनाओं में विस्थापितों को उस विकास में भागीदार बनाया जाये. गांधीजी ने आजादी के लिए सविनय अवज्ञा का रास्ता अपनाया तो आज विस्थापितों ने अपने पुनर्वास के अधिकारों के लिए इस रास्ते को चुना है. प्रभावितों का संकल्प पक्का है कि जीवन दांव पर लगाकर भी वो अपने अधिकारों को लेकर रहेंगे.
-आलोक अग्रवाल
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